सुनकर सूरज चुपचाप मायूसी और मासूमियत से बाहर से ही परेड और तिरंगे को फहराते और लहराते हुए एकटक देखता... सुनकर सूरज चुपचाप मायूसी और मासूमियत से बाहर से ही परेड और तिरंगे को फहराते और ल...
वो अलग बात है कि जनता अपने इस हक़ को लगभग तिलांजलि ही दे चुकी थी। वो अलग बात है कि जनता अपने इस हक़ को लगभग तिलांजलि ही दे चुकी थी।
इस उपन्यास का लेखक एक विचाराधीन कैदी है, जो पिछले 15 वर्षों से एक जेल में बंद है और एक इस उपन्यास का लेखक एक विचाराधीन कैदी है, जो पिछले 15 वर्षों से एक जेल में बंद है...
महिला - दिवस...। महिला - दिवस...।
उन्हीं ख्यालों और स्मृतियों के मिले-जुले रंगों को शायद थोड़ा और समझती हुई। उन्हीं ख्यालों और स्मृतियों के मिले-जुले रंगों को शायद थोड़ा और समझती हुई।
न ही अन्य लोगों की तरह मेरे परिवार का हाल करते हैं। न ही अन्य लोगों की तरह मेरे परिवार का हाल करते हैं।